Thursday, May 13, 2010

बोक्सिंग का मिनी क्यूबा- भिवानी

बीजिंग ओलंपिक में मुक्केबाजी की दहशत की शुरुआत और विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता में उस दहशत से सबको हैरान कर देने वाले विजेंद्र सिंह ने भिवानी को पूरी दुनिया में अपनी मुक्केबाजी की वजह से पहचान दिलाई है शायद यही वजह है की दुनिया अब भिवानी को मुक्केबाजी का मिनी क्यूबा के नाम से पुकार रही है! भिवानी के कालूबास गाँव के रहने वाले विजेंद्र सिंह मुक्केबाजी में भारत का नाम पूरी दुनिया में चमका रहे है, बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक से शुरू हुआ उनका सफ़र विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक तक जा पहुंचा, जहां उन्होंने क्यूबा के मुक्केबाजों पर भारतीय मुक्केबाजी की छाप छोड़ दी थी! अपनी मुक्केबाजी से पूरी दुनिया को मदहोश कर देने वाले विजेंद्र ने मुक्केबाजी को नए आयाम देने का साहस किया वही मुक्केबाजी प्रसंसको ने उन्हें नया आदर्श मान लिया है, फिलहाल वो विश्व मुक्केबाजी में शीर्ष पर जमे हुए है! विजेंद्र जितने अपने मुक्कों के पंच के लिए जाने जाते है उतने ही आकर्षक वो शारीरिक रूप से भी है! लेक्मे इंडिया फैशन वीक में रेम्प पर भी वो सबको मदहोश कर चुके है, भिवानी की शान में विजेंद्र के साथ अब एक नाम और जुड़ गया है और वो है विश्व युवा जूनियर चैम्पियन -विकाश यादव! भिवानी के ही विकाश यादव बेडमिन्टन की दुनिया में अपने देश के नाम रोशन करना चाहते थे लेकिन किस्मत के खेल निराले है जो चाहा वो हो न सका! बेडमिन्टन की जगह अब मुक्कों ने ले ली थी
विकाश ने पुणे की स्पोर्ट्स अकादमी को अपने सपने को पूरा करने के लिए चुना और अपने पंच के लिए पहचाने जाने लगा! सफ़र की शुरुआत एशियाई युवा चैम्पियन बनने के साथ हुई! मुक्केबाजी का सफ़र अब उनका विकाश करने लगा और धीरे -धीरे वो मुक्केबाजी में पहचाने जाने लगे! उनके इस सफ़र को आगे बढाया कोच गणपति मनोहरन ने, जो उन्हें इसी वर्ष अजरबेजान की राजधानी बाकू में आयोजित विश्व युवा जूनियर मुक्केबाजी प्रतियोगिता में अपने साथ लेकर गए! विकाश ने प्रतियोगिता के शुरूआती मुकाबले आसानी से जीत कर बाकू में भारत का डंका बजा दिया था लेकिन उनकी सेमी-फाइनल की डगर कठिन साबित हुई यहाँ उनका सामना जर्मनी के थामस बाह्रेन्होल्ट से होने वाला था जो मुक्केबाजी में जर्मनी को कई खिताब दिला चुके थे लेकिन विकाश ने अपने कोच की आशा को हकीकत में बदल कर मुकाबला ८ -० के विशाल अंतर से जीत कर फाइनल में प्रवेश किया और फिर फाइनल भी जीत कर दुनिया के युवा मुक्केबाज बनने का गोरव हासिल किया यक़ीनन पहले विजेंद्र और अब विकश ने दुनिया में भारतीय मुक्केबाजी को नई पहचान दी है,अगर भिवानी ऐसे ही मुक्केबाजों को जन्म देता रहा तो शायद वह क्यूबा को भी पीछे छोड़ देगा और भारतीय मुक्केबाजी की गूंज सारी दुनिया में सुनाई देगी!



संजय शर्मा
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता
एवं जनसंचार विश्वविद्यालय,भोपाल

No comments:

Post a Comment