Tuesday, October 12, 2010

कॉमनवेल्थ में छाई स्वर्णिम शतकीय दबंगाई


दिल्ली में चल रहा कॉमनवेल्थ फीवर रंगारंग समापन के साथ ख़त्म हुआ! २०१४ में होने वाले कॉमनवेल्थ के लिए ग्लासगो (स्कॉट्लैंड ) के प्रतिनिधियों को ध्वज प्रदान करके औपचारिक पूर्ति की गई! खेलों के इस अर्द्ध कुम्भ ने भारतीय खेल पटल पर एक नया अध्याय सकुशल पूरा किया! १९८२ में दिल्ली में हुए एशियाड के बाद २८ साल के बाद यह हमारे देश में खेलों का अब तक का सबसे बड़ा आयोजन था! कॉमनवेल्थ खेलों में हो रहे भ्रस्टाचार की परत खुल जाने से यह मुद्दा ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटिश मीडिया में लगातार छाया रहा! खेलों के दौरान अर्थात खेलों से पहले कलमाड़ी का भ्रस्टाचार में दबंग और खेलों के अंत तक हमारे देश के खिलाड़ी अपने सुनहरे पदकों का दबंग दिखाते नजर आ रहे है! हमारे देश के लिए यह पहला मौका था जब हम विश्व के ७१ देशों के ८००० से अधिक खिलाड़ियों के इस अर्द्ध कुम्भ का आयोजन करने में जुटे थे! खिलाड़ियों के टहरने के लिए खेल गाँव को दुल्हन की तरह सजाया गया लेकिन फिर भी खेल शुरू होने से पहले हम खेलगांव की आलोचनाओं के शिकार हुए! ब्रिटिश मीडिया ने तो इसे खेलों का सबसे नकारात्मक पहलु बताया जबकि ब्रिटिश मीडिया या अन्य देशों का मीडिया यह भूल गया की वर्ष २००२ में मेनचेस्टर कॉमनवेल्थ में हमारे देश की कई खेलों की टीमो को खेलगांव के दर्शन तक नही हुए! खैर यह खेलों की आलोचनात्मक दास्ताँ थी जो वक़्त के साथ गुजर चुकी है! दिल्ली कॉमनवेल्थ में हमे वो सब कुछ मिला जिसके लिए हम अब तक सोच रहे थे!इन खेलों में हमने ३८ स्वर्ण सहित १०१ पदक हासिल करके पदकों का शतक लगाया! २००६ मेलबोर्न में हुए कॉमनवेल्थ में हम चोथे स्थान पर थे लेकिन यहाँ हमने दूसरा स्थान पाया! यह पहला मौका था जब हमने पदकों का शतक लगाकर मेनचेस्टर कॉमनवेल्थ में जीते ६९ पदकों का रिकॉर्ड तोडा!भारोत्तोलक सोनिया चानू ने रजत पदक जीतकर अभियान की शुरुआत पहले दिन ही कर दी थी अब इस अभियान में सुनहरी चमक बिखरने का समय था जिसे पूरा किया ओलंपिक स्वर्ण विजेता अभिनव बिंद्रा और गगन नारंग की स्टार जोड़ी ने! जिन्होंने २५ मीटर युगल निशानेबाजी में भारत को पहला सोना दिला सुनहरी सफलता का अहसास कराया! बिंद्रा- नारंग के द्वारा जीते सोने की सुनहरी महक ने भारत के रणबांकुरों में सोना पाने की लालसा को दुगना कर दिया जिससे भारत कॉमनवेल्थ खेलों में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा! १९वें कॉमनवेल्थ खेलों में जहा हमारे देश के रणबांकुरों ने कई खेलों में रिकॉर्ड कायम किये वही कई खेलों ने हमें आशा के अनुरूप परिणाम नही दिए! डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पुनिया ने ट्रेक एवं फिल्ड एथलीट प्रतिस्पर्धा में जहा हमे ५२ साल बाद स्वर्ण दिलाया वही बीजिंग ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता विजेंद्र से स्वर्ण की आस लगाये प्रसंसकों को उस समय निरासा मिली जब वो इन उम्मीदों पर खरा नही उतरे और मुकाबले से बाहर हो गए! क्रिकेट की लोकप्रियता के साए में जी रहे भारतीय दर्शकों को इन खेलों ने अपने साए में भरने की कोशिश तो भरपूर की लेकिन फिर भी कुश्ती, निशानेबाजी, बोक्सिंग, हॉकी को छोड़ कर अधिकतर खेल दर्शकों के लिए तरसते रहे! १९वें कॉमनवेल्थ खेलों में कुलमिलाकर ७५ रिकॉर्ड नए बने जिनमे कुछ रिकॉर्ड भारतीय खिलाडियों के हिस्से में भी आये! तीरंदाजी में झारखंड के एक ऑटो चालक की लाडली बेटी ने व्यक्तिगत व टीम स्पर्धा में दोहरी स्वर्णिम कामयाबी हासिल की! १७ साल की दीपिका ने इतनी छोटी उम्र में स्वर्णिम निशाना लगा कर कॉमनवेल्थ खेलों में तीरंदाजी का स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव हासिल किया! उनकी इस स्वर्णिम दास्ताँ ने उन्हें एक ही दिन में तीरंदाजी का नया स्टार बना दिया! कॉमनवेल्थ खेलों में हॉकी की चमक एक बार फिर देखने को मिली जब राजपाल सिंह के नेतृत्व में टीम इंडिया ने पाक को ७-४ से हराकर बाहर का रास्ता दिखाया! चक दे इंडिया की गूंज अब हर तरफ गूंजने लगी थी ऐसा लग रहा था मानो टीम इंडिया के स्वर्णिम दिन फिर लौट आये है! टीम इंडिया को सेमी फ़ाइनल का टिकट कटाने के लिए बस एक और जीत की दरकार थी लेकिन इस बार मुकाबला अंग्रेजों से होने वाला था मैच के शुरू होने से लेकर अंत तक दोनों ही टीमों के खिलाड़ी एक दुसरे पर हावी रहे नतीजा मैच पर टिका और इस समय अंतिम गोल करने का दारोमदार टीम इंडिया के फॉरवर्ड खिलाड़ी शिवेंद्र सिंह पर था लेकिन शिवेंद्र ने भरोसे को हकीकत में तब्दील करके अपनी स्टिक से अंतिम समय में गोल करके फ़ाइनल में टीम इंडिया को प्रवेश कराया लेकिन जो चमक टीम इंडिया की हॉकी में अब तक नजर आ रही थी मानो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फ़ाइनल में वो चमक कही खो सी गई थी नतीजा हमे ८-० से अब तक की सबसे बड़ी हार झेलनी पड़ी!खैर गुमनामी के साए में डूब रहा हमारा राष्ट्रीय खेल कुछ चमक छोड़ने में तो कामयाब रहा ही साथ ही साथ हमे कॉमनवेल्थ में पहला पदक भी मिला! इन खेलों ने भारतीय नारी सब पर भारी जुमले को भी सच्चाई प्रदान की! महिलाओं ने अपनी शक्ति का परचम दिखाते हुए १०१ पदकों में से ३६ पदकों पर अपना दाव लगाया! खेलों के अंत तक एक खुली चुनोती भी देखने को मिली जब ऑस्ट्रेलिया की डिस्कस थ्रोअर में विश्व चैम्पियन रह चुकी डैनी सेमुअल्स ने कॉमनवेल्थ स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा पुनिया को ये कहकर अपनी प्रतिक्रिया जताई की कृष्णा पुनिया ने मेरी अनुपस्थिति में स्वर्ण जीता है यदि मैं इन खेलों में प्रतियोगी होती तो मुकाबला टक्कर का होता! विश्व चैम्पियन ने कृष्णा को इस सम्बन्ध में ये कहकर पल्ला झाड दिया की मैं किसी कारणवश इन खेलों में नही आ सकी लेकिन हमारे पास अभी मौका है, कृष्णा अगर मेरी चुनोती को स्वीकार करती है तो ये मुकावला फिर हो सकता है! खैर कृष्णा इस चुनोती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है और संभवत ये मुकावला फरवरी में हो सकता है! डैनी सेमुअल्स और कृष्णा पहले भी कई बार आमने सामने हो चुकी है जिसमे कृष्णा ने विश्व चैम्पियन को एक बार हराया भी है! कॉमनवेल्थ में मिली इन उपलब्धियों ने एशियाड के लिए स्वर्णिम भविष्य की उम्मीद बरक़रार रखी है! एशियाड में सफलता का डंका बजेगा या नही ये तो एशियाड में ही पता चल पायेगा!






Tuesday, October 5, 2010

वैरी वैरी स्पेशल ने फिर खेली स्पेशल पारी

मोहाली की पिच गेंदबाजों के पक्ष में दिखाई दे रही थी! मैच के तीसरे दिन जहा एक ओर ऑस्ट्रेलिया का दबदबा बन ही रहा था की इशांत की गेंदबाजी की तेज धार कंगारुओं को काटती चली गई ! पहली पारी में २३ रनों की बढ़त लेकर कंगारुओं ने मैच में बापसी करने की कोशिश जरूर की लेकिन दूसरी पारी में वें भारतीय गेंदबाजो के जवाबी आक्रमण के फेर में फ़स गए और १९२ रनों पर ही चलते बने! २१६ रनों का लक्ष्य भारतीय बल्लेबाजों के लिए कठिन नही दिख रहा था जिस तरह भारतीय बल्लेबाजों की बल्लेबाजी का खौफ कंगारुओं के भूतकाल में दिख

Tuesday, September 28, 2010

महिला मुक्केबाजी की सुपरमॉम- मेरी कोम

महिला मुक्केबाजी में एक नही, दो नही, पांच-पांच स्वर्ण पदक जीतना एक महिला खिलाड़ी को उसके खेल के प्रति समर्पित होने का परिणाम दर्शाता है! एम सी मेरी कोम मुक्केबाजी की इस कठिन प्रतिस्पर्धा में अपने आप को पूरी तरह सहज रखती है! जुड़वां बच्चो की माँ मेरी कोम ने विश्व महिला मुक्केबाजी में लगातार पांचवां स्वर्ण पदक जीतकर जाहिर कर दिया की महिला अपने बच्चो का पालन ही नही करती है, बल्कि अपने देश का प्रतिनिधित्व करने में भी सक्षम है! मेरी कोम का शुरूआती सफ़र ही उनकी सफलताओं का आगाज था मणिपुर के एक छोटे से गाँव की ये लड़की जब पहली बार मुक्केबाजी देखने पहुची तो वहा मुक्केबाजी कर रहे कुछ लडको ने मेरी से कहा की ये बच्चो के खेलने का खेल नही है एक पंच तुम्हारी नाक पर पड़ गया तो नाक टूट जायेगी! मेरी ने उसी समय पर सोच लिया की m

Friday, September 10, 2010

फिर छाया फिक्सिंग का साया

पाक के गलियारे एक बार फिर फिक्सिंग की बीमारी का दंश झेलने को मजबूर हो गए है, आखिर ये बीमारी तीन नापाक क्रिकेटर्स की अपने देश को सौगात थी! मुहम्मद आसिफ,सलमान बट, मोहम्मद आमिर के द्वारा रची गयी फिक्सिंग की साजिश ने इंग्लॅण्ड के खिलाफ चौथे टेस्ट मैच में फिक्सिंग के नए रूप को जन्म दिया! क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लोर्ड्स के मैदान पर इस साजिश को अंजाम देकर नापाक क्रिकेटर्स ने बदनामी का दाग यहाँ पर भी छोड़ दिया!

Tuesday, August 17, 2010

जारी रहेगा सह्बागी समर

दाम्बुला में चल रही त्रिकोणीय श्रंखला में भारत के दिग्गज बल्लेबाज जहा पहले मैच में ताश के पत्तो की तरह बिखर गए वही अगले ही मैच में श्रीलंका के खिलाफ सह्बाग ने ९९ रन बनाकर भारत को आसान जीत का हकदार बना दिया!कीवियो के खिलाफ भारत ने ३ विकेट शुरू में निकल कर मैच में पकड़ बना ली थी लेकिन किवी कप्तान टेलर और स्कॉट styr

Monday, May 31, 2010

हम भी है जोश में

जिम्बाम्बे की कमजोर टीम से हारने वाली युवा टीम इंडिया ने अपने अगले मैच में श्रीलंका जैसी मजबूत टीम को हराकर यह साबित कर दिया है की सुरेश रैना की ये युवा बिग्रेड किसी से कम नहीं है! श्रीलंका के खिलाफ अपना अगला मैच खेलने उतरी टीम इंडिया के युवा खिलाडियों ने २४३ रनों का लक्ष्य तीन विकेट खोकर ही प्राप्त कर लिया! रोहित शर्मा ने इस मैच में अपने एकदिवसीय करियर का दूसरा शतक १०१ बनाते हुए भारत को आसान जीत के करीब पहुचाया साथ ही साथ विराट कोहली की ८२ रनों की पारी भी श्रीलंका पर भारी पड़ी!सुरेश रैना की युवा बिग्रेड के सामने श्रीलंका हर समय संघर्ष करता नजर आया!इस जीत के साथ ही यह भी तय हो गया है की टीम इंडिया की यह युवा टीम हर टीम को हराने में सक्षम नजर आ रही है, आखिर युवाओं ने अपना जोश दिखा ही दिया!

Saturday, May 29, 2010

एक और हार

जिम्बाम्बे में खेली जा रही तीन देशो की एकदिवसीय श्रृंखला में भारत को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा! सुरेश रैना के नेतृत्व में टीम इंडिया की युवा बिग्रेड जिम्बाम्बे की नोसिखिया टीम से क्रिकेट के हर क्षेत्र में पीछे नजर आई! युवा बिग्रेड ने हालांकि २८५ रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया लेकिन जिम्बाम्बे के विकेटकीपर बल्लेबाज ब्रेंडन टेलर की ८१ रनों की पारी और अपना पहला एकदिवसीय मैच खेल रहे क्रेग इरविन के द्वारा बनाये गए ६१ की बदोलत जिम्बाम्बे ने यह मैच दस गेंद शेष रहते जीत लिया! जिम्बाम्बे ने इस मैच में जीत हासिल करते हुए भारत के खिलाफ ५०वे एकदिवसीय मैच में ९वी जीत आठ साल के लम्बे अंतराल के बाद हासिल की,उसने भारत के खिलाफ अंतिम मैच २००२ में जीता था इस हार ने टीम इंडिया की युवा बिग्रेड को ये सोचने पर मजबूर कर दिया है की ये तो शुरुआत है और आगे श्रीलंका जैसी आग है!

Thursday, May 13, 2010

शतरंज के मोहरों ने लिखी आनंद की दांस्ता

शतरंज की दुनिया में कई खिताब अपने नाम कर चुके विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद ने अपने नाम के अनुरूप खेल का प्रदर्शन करते हुए भारत को शतरंज का बादशाह बनाने में अहम् योगदान ही नहीं दिया है बल्कि वो शतरंज की हर कसोटी पर चेक पे चेक लगा कर विपक्षी को मात देते नजर आये है! ४ बार के विश्व विजेता आनंद सबसे कम उम्र के विश्व विजेता बनने गोरव भी हासिल कर चुके है, विश्व शतरंज प्रतियोगिता २०१० में बुल्गारिया के वेसलिन टोपालोव को हराकर विजेता बने आनंद शतरंज में आनंद की नई दास्ताँ लिखते हुए नजर आ रहे है!शतरंज के मोहरों के बीच आनंद बहुत ही गंभीर न होकर आनंद के साथ हर मुकाबले को अंजाम देते है उनके द्वारा बिछाई गई यह विसात हर खिलाड़ी को नजरअंदाज कर देती है लेकिन आनंद बस आनंद के साथ सब कुछ कर देते है, आखिर ये हमारे भारत के आनंद है!

बोक्सिंग का मिनी क्यूबा- भिवानी

बीजिंग ओलंपिक में मुक्केबाजी की दहशत की शुरुआत और विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता में उस दहशत से सबको हैरान कर देने वाले विजेंद्र सिंह ने भिवानी को पूरी दुनिया में अपनी मुक्केबाजी की वजह से पहचान दिलाई है शायद यही वजह है की दुनिया अब भिवानी को मुक्केबाजी का मिनी क्यूबा के नाम से पुकार रही है! भिवानी के कालूबास गाँव के रहने वाले विजेंद्र सिंह मुक्केबाजी में भारत का नाम पूरी दुनिया में चमका रहे है, बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक से शुरू हुआ उनका सफ़र विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक तक जा पहुंचा, जहां उन्होंने क्यूबा के मुक्केबाजों पर भारतीय मुक्केबाजी की छाप छोड़ दी थी! अपनी मुक्केबाजी से पूरी दुनिया को मदहोश कर देने वाले विजेंद्र ने मुक्केबाजी को नए आयाम देने का साहस किया वही मुक्केबाजी प्रसंसको ने उन्हें नया आदर्श मान लिया है, फिलहाल वो विश्व मुक्केबाजी में शीर्ष पर जमे हुए है! विजेंद्र जितने अपने मुक्कों के पंच के लिए जाने जाते है उतने ही आकर्षक वो शारीरिक रूप से भी है! लेक्मे इंडिया फैशन वीक में रेम्प पर भी वो सबको मदहोश कर चुके है, भिवानी की शान में विजेंद्र के साथ अब एक नाम और जुड़ गया है और वो है विश्व युवा जूनियर चैम्पियन -विकाश यादव! भिवानी के ही विकाश यादव बेडमिन्टन की दुनिया में अपने देश के नाम रोशन करना चाहते थे लेकिन किस्मत के खेल निराले है जो चाहा वो हो न सका! बेडमिन्टन की जगह अब मुक्कों ने ले ली थी
विकाश ने पुणे की स्पोर्ट्स अकादमी को अपने सपने को पूरा करने के लिए चुना और अपने पंच के लिए पहचाने जाने लगा! सफ़र की शुरुआत एशियाई युवा चैम्पियन बनने के साथ हुई! मुक्केबाजी का सफ़र अब उनका विकाश करने लगा और धीरे -धीरे वो मुक्केबाजी में पहचाने जाने लगे! उनके इस सफ़र को आगे बढाया कोच गणपति मनोहरन ने, जो उन्हें इसी वर्ष अजरबेजान की राजधानी बाकू में आयोजित विश्व युवा जूनियर मुक्केबाजी प्रतियोगिता में अपने साथ लेकर गए! विकाश ने प्रतियोगिता के शुरूआती मुकाबले आसानी से जीत कर बाकू में भारत का डंका बजा दिया था लेकिन उनकी सेमी-फाइनल की डगर कठिन साबित हुई यहाँ उनका सामना जर्मनी के थामस बाह्रेन्होल्ट से होने वाला था जो मुक्केबाजी में जर्मनी को कई खिताब दिला चुके थे लेकिन विकाश ने अपने कोच की आशा को हकीकत में बदल कर मुकाबला ८ -० के विशाल अंतर से जीत कर फाइनल में प्रवेश किया और फिर फाइनल भी जीत कर दुनिया के युवा मुक्केबाज बनने का गोरव हासिल किया यक़ीनन पहले विजेंद्र और अब विकश ने दुनिया में भारतीय मुक्केबाजी को नई पहचान दी है,अगर भिवानी ऐसे ही मुक्केबाजों को जन्म देता रहा तो शायद वह क्यूबा को भी पीछे छोड़ देगा और भारतीय मुक्केबाजी की गूंज सारी दुनिया में सुनाई देगी!



संजय शर्मा
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता
एवं जनसंचार विश्वविद्यालय,भोपाल

Tuesday, May 11, 2010

हॉकी का बढ़ता ग्राफ

मलेशिया के इपोह में खेले जा रहे अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट में भारत ने पाक, दक्षिण कोरिया और अब विश्व चैम्पियन ऑस्ट्रेलिया को मात देकर अंक तालिका में शीर्ष स्थान प्राप्त कर लिया है, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए मैच में तुषार खांडेकर, शिवेंद्र सिंह, अर्जुन हलप्पा के द्वारा किये गए ताबड़तोड़ गोलों की मदद से भारत एक समय ३-० से आगे नजर आ रहा था लेकिन विश्व चैम्पियन ने अच्छा खेल दिखाते हुए मैच में वापसी की कुछ उम्मीद जरूर लगाई लेकिन मैन ऑफ दी मैच तुषार खांडेकर के दो गोल मैच में चैम्पियन को चित करने में उपयोगी साबित हुए! भारत ने ऑस्ट्रेलिया को इस मैच में हराकर सात सालों से चला आ रहा जीत का अकाल भी दूर किया यक़ीनन यह भारतीय हॉकी का बढ़ता हुआ ग्राफ नजर आ रहा है

Monday, May 10, 2010

धोनी के बाद अब झूलन से आस

वेस्टइंडीज से हार के बाद सुपर-८ की दौड़ से बाहर हो चुकी धोनी की टीम हार के कारण को खोजने का प्रयास कर रही है, वही झूलन गोस्वामी की अगुवाई में महिला क्रिकेट टीम वेस्टइंडीज में चल रहे महिला विश्व कप में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है!पहले मैच में न्यूज़ीलैण्ड से हार के बाद महिला टीम ने पाक को को हराकर विश्व कप में धमाका कर दिया है, इस मैच में पूनम राउत ओर मिताली राज के ऑलराउंड प्रदर्शन ने भारत को विश्व कप स्पर्धा के अगले दौर में पहुचाने में अहम् भूमिका निभाई है, महिलाओं के द्वारा किया जा रहा अच्छा प्रदर्शन धोनी बिग्रेड को नसीहत देता है की प्रदर्शन में निरंतरता लाओ, जीत की आस जगाओ

Saturday, May 8, 2010

क्रिकेट में हारे, हॉकी में बाजी मारे

२०-२० विश्व कप के सुपर-८ में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ताश के पत्तो की तरह बिखर कर भारत भले ही हार गया हो लेकिन रोहित शर्मा के द्वारा खेली गयी ७९ रनों की पारी इस मैच में भारत के जख्मो पर मरहम का काम कर गयी! यह पारी उन्होंने उस समय खेली जब भारत ४९ रनों पर ६ विकेट गवां चूका था क्रिकेट में मिली इस हार से खेल प्रेमी थोड़े मायूस जरूर हुए लेकिन हॉकी में मिली जीत शायद उनके लिए तोहफा बन गयी!मलेशिया में खेले जा रहे अजलान शाह टूर्नामेंट में भारत ने अपने चिर प्रतिद्वंदी पाक को ४-२ से हरा कर हॉकी की चमक को बरकरार रखते हुए अपने प्रदर्शन में निरंतरता लाने का प्रयास कुछ हद तक किया है! पाक के खिलाफ मिली इस जीत ने यक़ीनन यह कहने का प्रयास किया है की भारतीय हॉकी का स्वर्ण युग एक बार फिर लौट के आएगा और फिर वही धुन होगी-जय हो,जय हो

Tuesday, May 4, 2010

कठिन डगर धोनी फिर भी निडर

वेस्ट इंडीज में खेले जा रहे तीसरे २० -२० विश्व कप में भारत ने अफगानिस्तान और साउथ अफ्रीका को हराकर दुसरे दौर में प्रवेश भले ही कर लिया हो, लेकिन अगले दौर में उनका मुकाबला २००९ की विजेता पाकिस्तान और विश्व चैम्पियन आस्ट्रेलिया से होगा जहा भारत की जीत की राह आसान नहीं होगी! इस कठिन राह पर भी माह़ी के नाम से जाने वाले धोनी निडर लग रहे है, वजह है रैना की आतिशी बल्लेबाजी जिसके लिए वो जाने जाते है !साउथ अफ्रीका के खिलाफ ६० गेंदों में १०१ रन मारकर भारत को जीत दिलाने वाले रैना भारत के पहले और दुनिया के तीसरे २० -२० शतकधारी बन गए है इससे पहले इस कारनामे को वेस्ट इंडीज के क्रिस गेल, न्यूज़ीलैंड के मेकुल्लम अंजाम दे चुके है! क्रिकेट प्रेमी और टीम इंडिया को सुरेश रैना से बस एक ही आस है..बरसो रे रैना रैना ,बरसो रे रैना बरसो

Thursday, April 15, 2010

इंडियन प्रीमियर लीग, जहा गेंद नही बस बल्ले की है जीत

आई पी एल का सफ़र जहा दर्शको को रोमांच से सराबोर कर रहा है वही २०-२० का ये नया सफ़र गेंदबाजों के लिए बस ये बता रहा है की एक ओवर की छ गेंदों को चोकों और छक्को से कैसे बचाया जाए

Monday, April 12, 2010

सचिन की तूफानी पारी जारी, मुंबई ने आईपीएल में बाजी मारी

सचिन की धमाकेदार पारियों का सफ़र ऐसा शुरू हुआ की अब थमने का नाम नहीं ले रहा है, सचिन हर मैच में मुंबई को बढ़त दिलाते जा रहे है! सचिन की पारी मैच दर मैच निखरती जा रही है! जयपुर में खेले गए मैच में तो उन्होंने ४९ गेंदों में ८९ रन जड़ दिए उनकी इस पारी का आकर्षण १० चौके और २ गगनचुम्बी छक्के रहे ! सचिन के रिकॉर्ड पर नजर डाली जाए तो हमे पता चलेगा की २०-२० में उनका प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है यदि बात की जाए २०-२० अंतरराष्ट्रीय करियर की तो उन्होंने

Sunday, April 11, 2010

आईपीएल:सेमीफाइनल की डगर, एक को छोड़ बाकी सब निडर

आई पी एल अपने रोमांच के चरम पर पहुच गया है लीग ma

Wednesday, March 31, 2010

उद्योगपति , टेनिस खिलाडी , और अब प्रतिबंधित पाकिस्तानी क्रिकेटर :सानिया ये तूने क्या किया

भारत की टेनिस सनसनी सानिया मिर्ज़ा ने प्रतिबंधित पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक के साथ विवाह करने की बात कह कर हजारो भारतीय टेनिस प्रसंसको का दिल तोड़ दिया है, कहा जा रहा है की सानिया विवाह के बाद दुबई में बसने की सोच रही है इसके लिए शोएब मलिक वहा की नागरिकता के बारे में सोच रहे है ! सानिया मिर्ज़ा इससे पहले उनके बचपन के दोस्त से सगाई तोड़ चुकी है ,उनके प्यार की अटकले इससे पहले महेश भूपति से लगाईं जा रही थी लेकिन सानिया ने इस बात का खंडन पहले ही कर दिया है ! अगर सानिया शोएब मलिक के बीते हुए कल के बारे में नजर डाले तो उन्हें पता चल जाएगा की शोएब इससे पहले भी हैदराबाद की आयशा के साथ प्यार के गुल खिला के सगाई कर चुके है और कुछ समय बाद तोड़ भी चुके है कही ऐसा न हो की सानिया उनकी दूसरी शिकार बन जाए ! शोएब मलिक का कहना है की सानिया शादी के बाद भी इंडिया की तरफ से टेनिस में अपना जलवा बिखेरती रहेंगी लेकिन जिस क्रिकेटर के चरित्र में इतने दाग हो वो भला किसी के बारे में क्या सोच सकता है ! सानिया के विवाह की खबरों से पाकिस्तान में ढोल पीते जा रहे है तो कही मिठाइया बाटी जा रही है लेकिन इसके विपरीत भारत के हजारो प्रसंसक उनके इस फेसले से नाराज है ...अंत यही है की सानिया ये तूने बहुत गलत किया

Sunday, March 28, 2010

पंचायती राज व्यवस्था(ग्रामीण स्थानीय शासन)

ग्रामीण परिवेश व कृषि की प्रधानता होने के कारण भारत की आत्मा गाँव में बसती है! स्वतंत्रता के पश्चात भारत सामुदायिक विकास,ग्राम विकास तथा पंचायती राज विकास के भरसक प्रयत्न किये गए ! अति प्राचीन काल से ही भारत में गणराज्य व्यवस्था का रूप देखने को मिलता है ! जिसमे स्थानीय कबीले के लोग अपने मुखिया का चयन करते थे! मौर्य काल में ग्राम स्तर का अधिकारी "ग्रामिक " कहलाता था! मुग़ल काल में गाँव स्तर पर तीन अधिकारी "मुकदम "(देखभाल हेतु ) , "चौधरी " (झगडे सुलझाने हेतु ), "पटवारी"(राजस्व व भूमि कार्य ) का कार्य करते थे, साथ ही साथ गाँव में बढ़े बुजुर्गो की पंचायत न्याय पंचायत तथा जातीय आधारित होती थी! ब्रिटिश काल में पंचायती राज व्यवस्था शिथिल हो गयी थी तथापि गाँव आत्मनिर्भर थे इसी कारण १८३० में इसे "चार्ल्स मेटकाफ" ने "लघु गणराज्य " कहा!



पंचायती राज व्यवस्था का बढ़ता हुआ विकास - १८७० में स्थानीय शासन के विकास की नई अवस्था का जन्म हुआ, उस बर्ष "लार्ड मेयो " का प्रसिद्ध प्रस्ताव पारित किया गया! उस प्रस्ताव में इस बात का समर्थन किया गया की शक्ति का विकेंद्रीकरण किया जाए अर्थात केंद्र से कुछ शक्ति व कार्य लेकर प्रान्तों को दे दिए जाए!
संचार से जुड़े हुए विल्बर शेरम ने शक्ति के केन्द्रीकरण पर बल दिया जबकि महात्मा गाँधी ने कहा की भारत की सर्वाधिक आबादी गाँव में निवास करती है इसलिए सत्ता का विकेंद्रीकरण होना चाहिए


१९२० में भारत शासन अधिनियम १९१९ लागु किया गया जिसके अंतर्गत प्रान्तों में द्वेद शासन प्रणाली लागु की गयी इसमें सत्ता को दो भागो में विभाजित किया गया जिसके द्वारा प्रान्त पर गवर्नर और राज्य के मंत्री उत्तरदायी थे इस प्रणाली में कुछ कार्य विकासात्मक प्रकृति के थे जैसे स्थानीय स्वशासन,सहकारिता ,कृषि जनता द्वारा नियंत्रण मंत्रियो के नियंत्रण में सौपे गए


स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ग्रामीण विकास को नईगति देने हेतु २० अक्तूबर १९५२ को "सामुदायिक विकास कार्यक्रम " विकास खंडो के माध्यम से शुरू हुआ ! यह सामुदायिक विकास कार्यक्रम मुख्यत अमेरिकी विचार है यह एक प्रकार से वह ग्रामीण पुनर्निर्माण के अर्थशास्त्र की परिवती है जिसे यू.एस.ऐ से सीखा तथा विकसित किया गया था सामुदायिक विकास कार्यक्रम की चार विशेषता थी -

(१) व्यापक रूप
(२)आर्थिक पुनर्निर्माण-केंद्रीय तत्व
(३)योजना का अवयवी रूप
(४) सोपान के आधार पर कार्यकर्ता


सन १९५७ में योजना आयोग ने बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में "सामुदायिक परियोजनाओं एवं राष्ट्रीय विकास" सेवाओं का अध्ययन दल के रूप में एक समिति बनाई जिसे यह दायित्व दिया गया की वह उन कारणों का पता करे जो सामुदायिक विकास कार्यक्रम की संरचना तथा कार्यप्रणाली की सफलता में बाधक थी ! मेहता दल ने १९५७ के अंत में अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की -लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण और सामुदायिक विकास कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु पंचायती राज व्यवस्था की तुरंत शुरुआत की जानी चाहिए ! पंचायती राज व्यवस्था को मेहता समिति ने "लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण " का नाम दिया !समिति ने ग्रामीण स्थानीय शासन के लिए त्रिस्तरीय व्यवस्था का सुझाव दिया!जो निम्न है-
(१)ग्राम- ग्राम पंचायत
(२)खंड -पंचायत समिति
(३)जिला -जिला परिषद्
इन तीनो में सबसे प्रभावकारी खंड निकाय अर्थात पंचायत समिति को परिकल्पित किया गया !बलवंत राय मेहता की सिफारिश के पश्चात पंडित जवाहर लाल नेहरु ने राजस्थान के नागौर जिले में २ अक्तूबर १९५९ को भारी जनसमूह के बीच शुभारम्भ किया!

१ नवम्वर १९५९ को आँध्रप्रदेश राज्य ने भी इसे लागु कर दिया!धीरे -धीरे यह व्यवस्था सभी राज्यों में लागु कर दी गयी,कुछ राज्यों ने त्रि स्तरीय प्रणाली को अपनाया तो कुछ राज्यों ने द्वि स्तरीय प्रणाली को अपनाया! लेकिन पंचायती राज व्यवस्था का यह नूतन प्रयोग भारत में सफल नहीं हो पाया!अत: इसमें सुधार की मांग की जाने लगी,इन्ही कारणों से जनता पार्टी के द्वारा दिसम्बर १९७७ में अशोक मेहता की अध्यक्षता में पंचायती राज संस्थाओं पर समिति गठित की गयी! समिति ने १९७८ में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमे पंचायती राज व्यवस्था का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया! इसकी निम्न सिफारिसे थी-
(१) जिला परिषदों को मजबूत बनाया जाए तथा पंचायती राज को दो भागो में जिला परिषद् और मंडल पंचायत में विभाजित किया जाए!
(२) मंडल पंचायतो का गठन कई गाँव मिलकर करे तथा ये मंडल पंचायत १५००० से २०,००० की जनसंख्या पर गठित की जाए!
(३)न्याय पंचायतों को विकास पंचायतों के साथ नहीं मिलाया जाये!

पंचायती राज व्यवस्था में सुधार के लिए कुछ समितिओं का भी गठन किया गया है जो निम्न है-
जी.वी.के राव समिति- १९८५ में योजना आयोग के परामर्श पर जी.वी के राव समिति का गठन किया गया इस समिति ने कहा की कार्यो के प्रशासन के लिए जिला परिषद् मुख्य निकाय होना चाहिए!जिला परिषद् का मुख्य अधिशासी अधिकारी जिला विकास आयुक्त होगा! जिला विकास आयुक्त का पद जिला कलेक्टर से ऊंचा होना चाहिए!

एल.एम सिंघवी समिति - जून १९८६ में एम .एल सिंघवी के अधीन एक समिति का विचार विमर्श हेतु प्रारूप रखा गया! इस समिति ने संविधान में एक अध्याय को शामिल करके स्थानीय शासन को पहचान, संरक्षण .परिरक्षण हो! इस समिति की सिफारिशे निम्न थी-
(१) ग्राम पंचायत का पुनर्गठन करके उसका विकास किया जाए!
(२) प्रत्येक राज्य में पंचायती राज न्यायाधिकरण की व्यवस्था की जाए!


पी के थूंगन समिति-यह संसदीय सलाहकार समिति की एक उप समिति थी,१९८८ में थूंगन की अध्यक्षता में हुआ था यह समिति केंद्रीय मंत्रिमंडल से सम्बंधित थी इसकी सिफारिशे निम्न थी -
(१) पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक आधार प्रदान किया जाए !
(२)जिला परिषद् पंचायती राज की दूरी होनी चाहिए
(३)पंचायतो का कार्यकाल ५ बर्ष होना चाहिए
(४)जिला कलेक्टर को जिला परिषद् का अधिशासी अधिकारी होना चाहिए
(५)राज्यों में वित्त आयोग का गठन होना चाहिए

१९८९ में पंचायती राज को संवैधानिक आधार प्रदान करने के लिए राजीव गाँधी सरकार द्वारा ६४वां संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया! यह लोकसभा में तो पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण यह पारित न हो सका!

संविधान का ७३ वां संशोधन- संविधान का यह संशोधन पंचायती राज व्यवस्था को नया रूप प्रदान करने वाला रहा, यह संशोधन १९९२ को पारित हुआ , २४ अप्रैल को१९९३ में ७३ वां संशोधन लागु किया, इसके अंतर्गत एक नया अध्याय -९ जोड़ा गया ,इसी के साथ अनुच्छेद १६ व ११वी अनुसूची जोड़ी गयी! इसकी प्रमुख सुझाब निम्न थे -
(१)ग्राम सभा
(२)पंचायतों का गठन
(३)पंचायतों में आरक्षण
(४) पंचायतों का कार्यकाल
(५)राज्य वित्त आयोग का गठन
(६)पंचायतों का निर्वाचन
(७) पंचायतों के कार्य - पंचायतो के कार्यो को ११वी अनुसूची में रखा गया है इसके अंतर्गत २९ विषय रखे गए है जिन पर पंचायत विधि बनाकर कार्य कर सकेगी!


पंचायती राज व्यवस्था की उपलब्धियां-
(१) जन सहभागिता
(२)अधिकारों के प्रति चेतना
(३) आर्थिक विकास
(४) महिलाओं की सहभागिता
(५) राजनीतिक जागरूकता
(६) लोकतंत्र का विकास
(७) कार्य संपादन में शीघ्रता

पंचायती राज व्यवस्था की असफलताएं-
(१)अज्ञानता
(२) धन की कमी
(३) दलबंदी
(४) ग्रामसभा का कमजोर होना
(५) जातिवाद
(६)महिलाओं का रबर स्टेम्प होना
(७) राजनीतिक चेतना का प्रभाव

मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था- १९९३ में संसद द्वारा ७३वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित होने के बाद सबसे पहले यह व्यवस्था मध्यप्रदेश में लागू हुई! २९ दिसम्बर १९९३ को मध्यप्रदेश विधानसभा में मध्यप्रदेश पंचायती राज व्यवस्था अधिनियम विधेयक को प्रस्तुत किया गया! इस विधेयक को ३० दिसम्बर १९९३ को पारित किया गया! १९ जनवरी १९९४ को राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया! २५ जनवरी १९९४ को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गयी! इसके लागू होने के बाद मई-जून १९९४ में मध्यप्रदेश के प्रथम पंचायत राज चुनाव हुए!






Thursday, March 25, 2010

ओबैदुल्लाह कप की वापसी से ऐशबाग-रोशन रोशन

भोपाल की हॉकी की शान ओबैदुल्लाह खा कप एक बार फिर आठ साल के लम्बे अंतराल के बाद अपनी चमक बिखेरने को बेक़रार है !हॉकी की नर्सरी कहा जाने वाला भोपाल शहर ओबैदुल्लाह कप का दीदार करने के लिए पूरी तरह अपने शबाब पर है, यदि देखा जाए तो यह भोपाल की हॉकी के स्वर्णिम युग की वापसी होगी !ओबैदुल्लाह कप की यदि बात की जाए तो यह अखिल भारतीय स्तर का टूर्नामेंट अंतिम बार २००२ में खेला गया,लेकिन प्रयोजको के पीछे हटने की वजह से यह आगे अपनी चमक बिखेरने में नाकामयाब रहा, लेकिन आठ साल का लम्बा इन्तजार अब पीछे छूठ चुका है , ओबैदुल्लाह कप फिर से ऐशबाग की शान में चार चाँद लगाने को तैयार है ! भोपाल की
हॉकी में चार चाँद लगाने की इस मुहीम में यदि किसी ने पहल की तो वो और कोई नहीं बल्कि वो शक्श है, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री -शिवराज सिंह चौहान! प्रदेश की हॉकी को नई पहचान देने के लिए उनके द्वारा किया गया ये सराहनीय प्रयास है!
शिवराज सिंह चौहान का दिल हॉकी पे आया , स्वर्णिम युग एक बार फिर लौट आया- हॉकी का हर मैच देखना उसे पसंद है, यही नहीं इसके साथ ही हॉकी की स्टिक और हॉकी के खिलाड़ियों के प्रति उनके दिल में बहुत जगह है एक ऐसा शक्श जिन्होंने प्रदेश की हॉकी को नई जान दी है! हमारा राष्ट्रीय खेल पिछले कुछ समय से काल के ग्रास में समाता जा रहा था वजह थी हॉकी को बढ़ावा देने वालों की, उसके अस्तित्व को बचाने की, लेकिन प्रायोजकों ने हॉकी से ज्यादा महत्व क्रिकेट के खेल को देकर इससे अपना मुँह मोड़ लिया लेकिन शिवराज सिंह चौहान हॉकी की चमक को बरकरार रखना चाहते थे कहीं न कहीं उनका दिल इस खेल पर आ गया था और फिर शुरु हुआ हॉकी का नया युग औबोदुल्ला गोल्ड कप के रुप में। भोपाल हमेशा से हॉकी का गढ़ रहा है और शायद यही वजह थी कि शिवराज सिंह चौहान इस गढ़ को ढहता हुआ नहीं देखना चाहते थे इस खेल को लोगों तक पहुंचाने के लिए और खिलाड़ियों को इस खेल के प्रति प्रेरित करने के लिए उन्होंने हॉकी की इस स्पर्धा की इनामी राशि तीन लाख से बढ़ा कर दस लाख कर दी है, यदि हॉकी को शिवराज सिंह के जैसे ही चाहने वाले मिल जाए तो वो दिन दूर नहीं होगा जब फिर से ओलंपिक में तिरंगा लहरेगा !

नवीन एस्ट्रो टर्फ और दूधिया रोशिनी में होंगे मैच- ओबैदुल्लाह कप की तैयारी पूरी हो चुकी है, ऐशबाग को दुल्हन की तरह सजाया गया! इस बार दर्शको को दूधिया रोशिनी में हॉकी का रोमांच देखने को मिलेगा! ओबैदुल्लाह कप के लिए ऐशबाग़ को को नया रूप दिया गया है , ऐशबाग में पहली बार दर्शको को हॉकी के प्रति प्रेरित करने वाले स्लोगन देखने को मिलेंगे, जो शायद कह रहे है, हॉकी का स्वर्ण युग एक बार फिर लौट आया ! ऐशबाग़ की यदि बात की जाए तो यहाँ २०००० दर्शक हॉकी का आनंद ले सकते है , इस बार हॉकी का रोमांच इतना है की यहाँ भोपाल के बाशिंदे तो हॉकी का लुत्फ़ लेंगे ही साथ ही साथ रीवा,सतना ,जबलपुर ,इंदौर ,ग्वालियर के लोग भी जमा होंगेऔर फिर एक बार वही धुन होगी- चक दे ओ चक दे इंडिया

ओबैदुल्लाह का इतिहास , कुछ बीते हुए कल की बात - ओबैदुल्लाह कप के इतिहास पर नजर डाली जाए तो हमे पता चलता है की भोपाल की हॉकी की गूंज पूरे भारत में थी ! एक जमाना था जब भोपाल को हॉकी का बादशाह कहा जाता था १९३१ में भोपाल ने पहली बार राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता में भाग लिया !स्वर्गीय इस्माइल अब्बासी जिन्हें "मास्टर आफ भोपाल हॉकी " और "आर्किटेक्ट आफ भोपाल हॉकी कहा गया को भोपाल हॉकी की बागडौर सौपी ! १९३१ से १९५० तक भोपाल पूरे भारत में हॉकी के बादशाह के नाम से जाना जाने लगा ! कर्नल नवाबजादा रशीद उज जफ़र ने भोपाल वंडर्स नाम से एक टीम बनायीं और मथुरा गोल्ड कप में भाग लेने के लिए वे टीम को लेकर मथुरा पहुचे ! यहाँ उनकी टीम ने पहली बार मथुरा गोल्ड कप जीता और इस जीत से उनके दिमाग में एक उपज पैदा हुई और उन्होंने अपने पिता मोह्सिनुल मुल्क जनरल ओबैदुल्लाह खा की स्मृति में एक हॉकी प्रतियोगिता कराने का निर्णय लिया जिसे ओबैदुल्लाह खा गोल्ड कप का नाम दिया

प्रायोजक -खेल और युवा कल्याण बिभाग (मध्य प्रदेश)